Wednesday, July 27, 2011

ईश्वर से उपहार

पिल्चु हाड़ाम और पिल्चु बुड़ीही ने अपने संतानों को १२ गोत्रो में विभाजित कर दिया। अब ये संताल अपने आदिम माता पिता से याकाना करते हैं की अब हमारा जीवन- यापन कैसे होगा ? तब ये दोनों आदिम माता और पिता मारांग बुरु के पास जाकर अपनी समस्या का समाधान चाहते हैं। तब मारांग बुरु के जो भी सभी प्रकार के वन्य बीज और अनाज के विभिन्न दाने रहते हैंसब इन दोनों दंपत्ति को देते हैं । इसके बाद से हम कह सकते हैं की संताल जाति में कृषि के प्रति जागरूकता आती है । अब शिकारी के साथ -साथ पशुपालन में भी आगे हो जाते है। इस वक्त तक ये संताल जाति हिहिरी-पिपिरी में ही रहती थी । जो की आज का वर्तमान हजारीबाग में इसका संभावित जगह बतलाई जाती है।

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