Wednesday, July 27, 2011

ईश्वर से उपहार

पिल्चु हाड़ाम और पिल्चु बुड़ीही ने अपने संतानों को १२ गोत्रो में विभाजित कर दिया। अब ये संताल अपने आदिम माता पिता से याकाना करते हैं की अब हमारा जीवन- यापन कैसे होगा ? तब ये दोनों आदिम माता और पिता मारांग बुरु के पास जाकर अपनी समस्या का समाधान चाहते हैं। तब मारांग बुरु के जो भी सभी प्रकार के वन्य बीज और अनाज के विभिन्न दाने रहते हैंसब इन दोनों दंपत्ति को देते हैं । इसके बाद से हम कह सकते हैं की संताल जाति में कृषि के प्रति जागरूकता आती है । अब शिकारी के साथ -साथ पशुपालन में भी आगे हो जाते है। इस वक्त तक ये संताल जाति हिहिरी-पिपिरी में ही रहती थी । जो की आज का वर्तमान हजारीबाग में इसका संभावित जगह बतलाई जाती है।

Monday, July 25, 2011

पृथ्वी का उद्भव


संथाल पौराणिक कथाएं कहती है की इस धरती के शुरुवात में जल ही जल थी। अन्नत सागर, इस पृथिवी पर भूमि का कहीं कोई अस्तित्व नहीं था। प्राणियों का कोई सृष्टी नहीं हुई थी। सर्वशक्तिमान ने अनेक जलीय जीवों को बनाया। जैसे की इस पटचित्र में दिखाया गया है। केकड़ा, कश्छप, कृमि, मछली और जलीय सांप इत्यादि। फिर भी परमपवन ईश्वर संतुष्ट नहीं हुआ । उसने चाहा कोई प्राणी बनाया जाय जो उसके सदृश्य हो जो उसके मह्ताम्य को समझ सके और उसकी पूजा कर सके।उसने देवताओं और यक्षों का एक सभा बुलाया । जिसमे विश्वकर्मा भी उपस्थित थे । परमेश्वर ने कहा हम मानव का निर्माण करेंगे जो हमारे तुल्य होगा जिसमे बुद्धि , आचार- विचार होगा और हम देवताओं का जयगान करेंगे। पर मनुष्य को बनाया जाय तो कैसे ? इश्वर स्वर्ग से "तोड़े सुतम" (मौली धागा) में सागर में स्नान करने उतारते थे । उसने इस पृथिवी को बनाने या फलीभूत करने से पहले भी एक बार धरती बनाया था पर वो धरती मनुष्यों के पाप और कुकर्म से भर गया था इस लिए उसने वो पृथिवी में जलप्रलय लाकर विनष्ट कर दिया था। अब ये इश्वर आशा करतें हैं की मनुष्य उनकी आदेश को मानने वाले होंगे, पर इस दुनिया में भी इंसानों की कोई दुम सीधी नहीं हुई। ईस्वर कई दिनों के बाद धरती पर स्नान करने उतरे थे । इस लिए उसने अपना मेल रगड़ -रगड़ कर साफ किया । और उसने उन मेलों से दो चिड़िया बनाया और उनका नाम उन्होंने हास और हांसिल रखा कियों की वो मेल ( collar bone ) की थी । संथाली में इस हड्डी को "हंसली जांग कहतें हैं। इसी के नाम से इन दो पक्षी का नाम पड़ा। फिर भगवान ने इसमें प्राण फूंका और आकाश में विचरण करने के लिए छोड़ दिया ..एक किताब में ये जिक्र है की ये पक्षी महादेव के सर में आकर बैठते हैं। कुछ श्रुति ये कहती है की ईष्ट देव सृजनहार के शीश में आकर बैठते है। पर थक हार कर वो अपने सृजनहार के शिर पर बैठ जाते हैं।