Wednesday, December 28, 2011

आँखों में

आँखों में कुछ बुँदे थे
दिल में कुछ कोहरे
हम यूँ किसी के ख्याल में
पिरोये हुए थे चेहरे ।

हिम शिखरों के बीच
उड़ती उन घटाओं सी
भटक गया है आज मन
जाने क्यों एक नदी सी ?

हलकी एक ठंडी सी
लिए दिल में एहसास
अपने से ही क्यों दगा किया
क्यों किया अपना उपहास।

अनंत सागर के किनारे
आज भी बैठा हूँ
उन यादों की कुसुम सुमनों को
सागर तीर को समर्पित करता हूँ।