Friday, January 30, 2015

Harata Buru /Ararat Mountain

Harata Buru /Ararat Mountain


http://en.wikipedia.org/wiki/Mount_Ararat

The book" The Santal and the Bibical Creation Traditions"
by Timotheas Hembrom.
Book published by adivaani, 2013
He writes: A brief History of Santals

The early history of santals, among the illiterates, who still form the majority, continues to be passed on in oral forms through their songs and narration of legends. Through these are not without some omissions and additions, nevertheless the themes and essence in all are the same. The common assertion of their past, which may be considered as their primal historical credo is:

Hihiri Pipiri rebon Janam lena.
Khoj kaman rebon khoj lena.
Harata rebon haralena,
Sasang beda re jatena ho. 

In Hihiri Pipiri (a good Place) we were born,
we were sought after by Thakur Jiv in khoj kaman,
we were replenished again in Harata
We fixed our ethenic identity and social order at Sasang beda(The Plains of turmeric).

this is the first of their historical credo in which they remember their pre-historic from the creation to the post annihilation period. Their tradition of origin states that at Khoj-kaman the first generation of human beings became very wicked in the sight of God, Thakur Jiv. They became like beasts not respecting one another. Thakur-Jiv called them back to himself, but they were not repentant so he destroyed them with the fire from heaven except one pair.

इसी उपरोक्त संगीत को पुस्तक "संताल संस्कृति " में  लेखक माननीय दूरबीन सोरेन लिखते हैं. पुस्तक बंगाली में रचित है. मैं यहाँ हिंदी में अनुवाद करने का प्रयास किया हुँ.
जो निम्नलिखित है. इसमें इन्होने "बुरु (BURU)" शब्द को जोड़ा है.

Hihiri Pipiri rebon Janam len.               हिहिड़ी -पिपीड़ी  रेबोन जानाम लेन,
Khoj kaman rebon khoj len.                 खोज-कामान रेबोन खोज लेन।
Harata buru rebon haralen,                  हारता बुरु रेबोन हारा लेन
Sasang beda re jatena ho.                   सासांग बेडा रेबोन जात एना हो।

होड़ अथवा संताल समुदाय की सृष्टि की आदि स्थल हिहिड़ी-पिपीड़ी नामक जगह भूमध्य सागर के आसपास किसी एक स्थल पर अवस्थित थी।  हिहिड़ी-पिपीड़ी आदि निवास से सम्बंधित बहुत सारे तत्कालीन अज्ञात संताल कवियों ने गीतों की रचना की और सांस्कृतिक अनुष्ठानों के माध्यमों से वंश परंपरा से संथाल समुदाय के मुखों से ये गीत सुनाई देती है.
संताल सृष्टितत्व के ज्ञाता सुदूर महाकाश से ठाकुर (सूर्य ) और उसकी स्त्री ठाकरान प्रतिदिन 'तोड़े सुतम' (एक प्रकार का धागा ) से पृथ्वी के उप्पर सागर जल में (अर्थात श्वेत सागर और लाल सागर जल ) स्नान करने के लिए उतर आते थे। तोड़े सुतम वास्तविकता में कोई धागा नहीं है. सूर्य की किरणों के सागर जल सतह में सूर्य की किरणों से झिलमिल दीप्तमान रश्मियों का आभाष या उन सहश्र रश्मि पुंजो को ही तोड़े सुत या चकित धागा कहा गया है। इसी 'तोड़े' शब्द से ही बांग्ला 'तड़ित' शब्द की उत्पत्ति हुई है.
इस तोड़े सूत के माध्य्म से ठाकुर और ठाकरान प्रतिदिन  सागर जल में स्नान करके महाकाश अपने राज्य में वापस चले जाते थे।  ठाकुर ठाकरान के संयुक्त शक्ति से ही सृष्टि का निर्माण हुआ है।  ठाकुर शब्द के सन्धि विच्छेद  करने से ठाँव +अंकुर ; ठाँव इसका अर्थ है स्थान या जगह ; अंकुर का अर्थ है अंकुरित होना ,अर्थात जिसके शक्ति के सामर्थ्य से जगह या  स्थान में अंकुर का फुटन हो उसे ठाकुर (ठाकुर बा सूर्य), ठाकरान ठाकुर जी का स्त्रीलिंग रूप है. सूर्य को ही ठाकुर जी के रूप में कल्पना किया गया है।
प्रतिदिन स्नान करने ठाकुर और ठाकरान आते और अपने शरीर के मेल को इकठा करके रखते।  कुछ दिनों के बाद ही उन्दोनो ने देखा की काफी मैल जमा हो गयी है।  ठाकरान उस मैल से दो पंछी बनाने की इच्छा प्रकट की।  कुछ दिनों के  ठाकरान ने दो खूब सुन्दर पंछी का निर्माण की।


चूँकि हसली हड्डी (collar-bone) से मैल निकाले थे इसलिए दोनों पंछी का नाम हांस और हांसिल (हांस नर पछी और  हांसिल मादा पछी ) रखा गया। हांस या हंसली हड्डी गले के नीचे दोनों अगल बगल हड्डियों को कहते हैं संथाली में ।  ठाकुर जी ने पछी में प्राण का संचार करके पछी युगल को आकाश में उड़ा दिए। उसी पछी से आदिम मनुष्य पिलचु हाड़ाम और पिलचु बूढ़ी का जनम मानव सृष्टि के प्रतिकातमक रूप में लिए जाते हैं. हांस और हांसिल यथार्थ में कोई पछी नहीं है। इस नाम की कोई पछी संताली भाषा में नहीं है।  ये दोनों रूपक नाम है।  हांस शब्द  वास्तव में हंस शब्द से आया है हंस शब्द का अर्थ आनंद या रतिक्रिया।  ठाकुर  ठाकरान ने pleasure या सम्भोग अर्थात पॉजिटिव या negative क्रिया के बीच सृष्टि की उत्पत्ति हुई. सिर्फ सूर्य की किरणों से सृष्टि नहीं हुई है , सूर्य की रश्मि और जल ये दोनों के Positive और Negative क्रिया के फलस्वरूप प्राण का संचार संभव हुवा है।
भाषा विशेषज्ञ सुनीति चटर्जी कहती हैं, "The kols probably came into India from Indo-China, trough Asam and Bengal."(Selected papers-vol-1)
संताल काराम बिनती या काव्य ब्याख्या में सृष्टि तत्त्व के इतिहास  जाता है की कोल या संताल जाति भारतवर्ष के  उत्तर पश्चिम सीमांत से भारत में प्रवेश किया एवं तिब्बत असम होते हुवे बिहार और बंगलादेश में प्रवेश किया था।  संताली सांस्कृतिक गीत में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है.

हिहिड़ी -पिपीड़ी  रेबोन जानाम लेन,
खोज-कामान रेबोन खोज लेन।
हारता बुरु रेबोन हारा लेन
सासांग बेडा रेबोन जात एना हो।

अर्थात कॉल या संताल हिहिड़ी-पिपीड़ी में जन्म हुआ,  खोजकमान में हमलोग सम्मिलित हुए, हाराता पर्वत  में हमारा लालन पालन हुआ और सासांग बेडा में हमलोगों का गोत्रों का विभाजन हुआ।
हाराता पर्वत को ही अरारत पर्वत के नाम से जाना जाता है। पारसियों के इतिहास में ये कहा गया है कि -
Ararat Mountain is the cradle of human being; अरारत पर्वत में हमारा लालन पालन हुआ से तुलना किया जा है। हाराता पर्वत या अरारत पर्वत से संथाल समुदाय सासांगबेडा नमक एक जगह चली आती है।  सासांगबेडा बेबीलोन देश के दक्षिण दिशा में अवस्थित है।  वहीँ पर संताल जाति के गोत्रों का विभाजन हुआ। गोत्र विभाजन के पश्चात ये लोग जाड़पी  देश चले आये। जाड़पी देश पारश के एक अंश को सम्बोधित किया जाता हो अनुमानित होता है। वहीँ से ये लोग आयरे या ईरान देश की और प्रस्थान करते हैं।  ईरान से होते हुए ये लोग कायंडा या अर्थात अफगानिस्तान चले आते हैं। अफगानिस्तान के पूर्व में कान्दाहार या गांधार नामक देश थी।