Tuesday, August 30, 2011

तारा

भीगी- भीगी नमी- नमी सी हैं रातें
जली- जली बुझी- बुझी सी हैं सांसे
ओश से बिखरे हुए हैं अरमान
धुली -धुली, घुली- घुली सी हैं आसमान

पत्रदल सी शिथिल हैं यादें
अधखिली सी हैं फर्यादें
भीगे हुए तितली सी है ये मन
लताओं के बीच फसी हुई हैं यादें

गंभीर रेगिस्तान सा पड़ा है ये मन
किसी संदूक में पड़ा हो कोई हीरा
टुटा असमान से कोई तारा
दूर कहीं हो अलग जा गिरा ...



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