आँखों में कुछ बुँदे थे
दिल में कुछ कोहरे
हम यूँ किसी के ख्याल में
पिरोये हुए थे चेहरे ।
हिम शिखरों के बीच
उड़ती उन घटाओं सी
भटक गया है आज मन
जाने क्यों एक नदी सी ?
हलकी एक ठंडी सी
लिए दिल में एहसास
अपने से ही क्यों दगा किया
क्यों किया अपना उपहास।
अनंत सागर के किनारे
आज भी बैठा हूँ
उन यादों की कुसुम सुमनों को
सागर तीर को समर्पित करता हूँ।
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